
ISRAEL – HISTRY PRESENT CONFLICT, MILITARY AND ECONOMY OF ISRAEL AND IRAN AND WHAT THE STARS FORETELL
इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच का संघर्ष एक जटिल और दीर्घकालिक मुद्दा है, जिसमें धार्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक और भौगोलिक कारक शामिल हैं। यहां कुछ मुख्य कारण दिए गए हैं:
1. ऐतिहासिक दावा: दोनों पक्ष इस भूमि पर ऐतिहासिक और धार्मिक दावा करते हैं। यहूदी लोग मानते हैं कि यह भूमि उनके पूर्वजों की है, जबकि फिलिस्तीनी अरब लोग भी इस क्षेत्र को अपनी पैतृक भूमि मानते हैं।
2. बैल्फोर घोषणा और ब्रिटिश शासन: प्रथम विश्व युद्ध के बाद, ब्रिटिश शासन ने 1917 में बैल्फोर घोषणा के माध्यम से यहूदियों के लिए एक राष्ट्रीय गृह बनाने की बात कही। इससे यहूदी प्रवासियों की संख्या में वृद्धि हुई, जिससे स्थानीय अरब आबादी के बीच असंतोष बढ़ा।
3. संयुक्त राष्ट्र का विभाजन योजना (1947): संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में एक योजना प्रस्तुत की जिसमें फिलिस्तीन को यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने का प्रस्ताव था। यहूदी समुदाय ने इस योजना को स्वीकार कर लिया, लेकिन अरब राज्यों और फिलिस्तीनी नेतृत्व ने इसे अस्वीकार कर दिया।
4. 1948 का अरब-इज़राइल युद्ध: 14 मई 1948 को इज़राइल ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। इसके तुरंत बाद, पड़ोसी अरब देशों ने इज़राइल पर आक्रमण किया, जिसके परिणामस्वरूप 1948 का युद्ध हुआ। इस युद्ध के बाद इज़राइल ने अपने क्षेत्र का विस्तार किया और लाखों फिलिस्तीनी शरणार्थी बन गए।
5. छह-दिवसीय युद्ध (1967): 1967 के छह-दिवसीय युद्ध में, इज़राइल ने पश्चिमी तट, गाजा पट्टी, गोलान हाइट्स, और सिनाई प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया। इन क्षेत्रों में इज़राइली बस्तियों की स्थापना ने संघर्ष को और बढ़ा दिया।
6. फिलिस्तीनी राष्ट्रवाद और PLO: 1960 के दशक में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) का गठन हुआ, जिसने इज़राइल के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष और फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना का समर्थन किया। इसके परिणामस्वरूप हिंसा और आतंकवादी हमलों की घटनाएं बढ़ीं।
7. ओस्लो समझौता (1993): 1993 में ओस्लो समझौते के माध्यम से, इज़राइल और PLO के बीच शांति वार्ता शुरू हुई। हालांकि, कई मुद्दों पर असहमति बनी रही, जैसे कि यरूशलेम की स्थिति, शरणार्थियों का अधिकार, और बस्तियों का विस्तार।
8. गाजा पट्टी और हमास: 2005 में इज़राइल ने गाजा पट्टी से अपने सैनिकों और बस्तियों को हटा लिया, लेकिन 2007 में हमास ने गाजा पर नियंत्रण कर लिया। इसके बाद से इज़राइल और हमास के बीच कई बार संघर्ष हुआ है, जिससे स्थिति और अधिक जटिल हो गई है। 9. धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेद: यरूशलेम का शहर, जिसमें यहूदी, मुस्लिम और ईसाई धार्मिक स्थल शामिल हैं, दोनों पक्षों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यरूशलेम की स्थिति को लेकर विवाद भी संघर्ष का एक प्रमुख कारण है। ये मुख्य कारण हैं जो इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष को बढ़ाते हैं। इस मुद्दे का हल निकालना बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है और आज भी यह क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए एक बड़ी बाधा है।
ईरान और इज़राइल के सैन्य ताकत और हथियारों की तुलना
ईरान और इज़राइल के सैन्य ताकत और हथियारों की तुलना करना एक जटिल प्रक्रिया है, क्योंकि दोनों देशों के पास अलग-अलग प्रकार की सैन्य क्षमताएं, रणनीतियां और तकनीकी स्तर हैं। यहाँ दोनों देशों की सैन्य शक्तियों और हथियारों की तुलनात्मक समीक्षा दी गई है: इज़राइल की सैन्य ताकत
1. सैन्य बजट: इज़राइल का सैन्य बजट काफी बड़ा है और यह अपने GDP का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रक्षा पर खर्च करता है।
2. सक्रिय सैन्य बल: इज़राइल के पास लगभग 1,70,000 सक्रिय सैनिक हैं।
3. रिजर्व फोर्स: इज़राइल के पास लगभग 4,65,000 रिजर्व सैनिक हैं।
4. वायुसेना: इज़राइल की वायुसेना (IAF) को दुनिया की सबसे उन्नत वायुसेनाओं में गिना जाता है। इसके पास F-35, F-15, और F-16 लड़ाकू विमान हैं। इसके अलावा, ड्रोन और मिसाइल तकनीक में भी यह अग्रणी है।
5. नौसेना: इज़राइल की नौसेना के पास पनडुब्बियाँ, मिसाइल नौकाएँ और अन्य उन्नत जहाज हैं। ये भूमध्य सागर और लाल सागर में सक्रिय रहते हैं।
6. मिसाइल रक्षा प्रणाली: इज़राइल की मिसाइल रक्षा प्रणाली, जैसे कि आयरन डोम, डेविड्स स्लिंग और एरो, इसे मिसाइल और रॉकेट हमलों से बचाने में सक्षम हैं।
7. परमाणु हथियार: इज़राइल के पास गुप्त रूप से परमाणु हथियार होने का अनुमान है, हालांकि यह आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं करता।
ईरान की सैन्य ताकत
1. सैन्य बजट: ईरान का सैन्य बजट इज़राइल से कम है, लेकिन यह अपने क्षेत्रीय प्रभुत्व को बढ़ाने के लिए पर्याप्त धनराशि खर्च करता है।
2. सक्रिय सैन्य बल: ईरान के पास लगभग 5,34,000 सक्रिय सैनिक हैं।
3. रिजर्व फोर्स: ईरान के पास लगभग 3,50,000 रिजर्व सैनिक हैं।
4. वायुसेना: ईरान की वायुसेना के पास पुराने लेकिन विभिन्न प्रकार के लड़ाकू विमान हैं, जिनमें F-14, मिग-29 और Su-24 शामिल हैं। हालांकि, यह इज़राइल की वायुसेना से काफी पिछड़ी हुई है।
5. नौसेना: ईरान की नौसेना के पास पनडुब्बियाँ, विध्वंसक, और छोटे जहाज हैं, और यह विशेष रूप से होरमुज़ जलडमरूमध्य में सक्रिय है।
6. मिसाइल क्षमता: ईरान के पास बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों का बड़ा भंडार है। इसकी मिसाइल क्षमता क्षेत्रीय और दूरगामी लक्ष्यों को निशाना बनाने में सक्षम है।
7. ड्रोन: ईरान ने हाल के वर्षों में अपने ड्रोन प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण प्रगति की है और इसका इस्तेमाल विभिन्न क्षेत्रों में किया है।
8. परमाणु कार्यक्रम: ईरान का परमाणु कार्यक्रम विवादास्पद है। यह दावा करता है कि इसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन कई देशों को शक है कि यह परमाणु हथियार विकसित कर सकता है।
निष्कर्ष • तकनीकी श्रेष्ठता: इज़राइल की सैन्य तकनीक उन्नत है, विशेष रूप से इसकी वायुसेना, मिसाइल रक्षा प्रणाली और ड्रोन तकनीक। • संख्या में श्रेष्ठता: ईरान के पास संख्या में अधिक सैनिक हैं और इसकी मिसाइल क्षमता भी मजबूत है। • क्षेत्रीय प्रभाव: दोनों देशों का क्षेत्रीय प्रभाव है, लेकिन उनके सैन्य दृष्टिकोण और गठबंधन अलग-अलग हैं। कुल मिलाकर, इज़राइल की तकनीकी श्रेष्ठता और उन्नत हथियार प्रणालियाँ इसे एक मजबूत सैन्य शक्ति बनाती हैं, जबकि ईरान की संख्या में श्रेष्ठता और मिसाइल क्षमता इसे एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय खिलाड़ी बनाती है। इन दोनों देशों के बीच किसी भी संघर्ष का परिणाम कई कारकों पर निर्भर करेगा, जिनमें अंतरराष्ट्रीय समर्थन, रणनीतिक चालें, और राजनीतिक परिस्थितियाँ शामिल हैं।
ईरान और इज़राइल की अर्थव्यवस्थाओं की
ईरान और इज़राइल की अर्थव्यवस्थाओं की तुलना करने से दोनों देशों की आर्थिक ताकत, चुनौतियों और अवसरों के बारे में स्पष्टता मिलती है। यहाँ दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं की तुलनात्मक समीक्षा दी गई है:-
इज़राइल की अर्थव्यवस्था
1. सकल घरेलू उत्पाद (GDP): 2023 में इज़राइल का अनुमानित GDP लगभग $480 बिलियन था।
2. GDP प्रति व्यक्ति: इज़राइल का GDP प्रति व्यक्ति लगभग $52,000 है, जो एक उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था का संकेत है।
3. आर्थिक संरचना: • उच्च तकनीक और नवाचार: इज़राइल को “स्टार्ट-अप नेशन” के रूप में जाना जाता है। इसका तकनीकी और नवाचार क्षेत्र बहुत मजबूत है, विशेष रूप से साइबर सुरक्षा, चिकित्सा प्रौद्योगिकी, और सॉफ्टवेयर विकास में। • सेवा क्षेत्र: सेवा क्षेत्र इज़राइल की अर्थव्यवस्था का प्रमुख हिस्सा है, जिसमें वित्त, पर्यटन, और तकनीकी सेवाएँ शामिल हैं। • कृषि: आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग करके इज़राइल ने कृषि क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है।
4. विदेशी निवेश: इज़राइल में विदेशी निवेश का बड़ा प्रवाह है, जो उसकी आर्थिक स्थिरता और नवाचार क्षमता को दर्शाता है।
5. मुद्रास्फीति और बेरोजगारी: इज़राइल की मुद्रास्फीति दर आमतौर पर कम रहती है और बेरोजगारी दर भी नियंत्रण में रहती है।
6. वाणिज्यिक संबंध: इज़राइल के प्रमुख व्यापारिक साझेदार अमेरिका, यूरोपीय संघ, और एशियाई देश हैं।
ईरान की अर्थव्यवस्था
1. सकल घरेलू उत्पाद (GDP): 2023 में ईरान का अनुमानित GDP लगभग $250 बिलियन था।
2. GDP प्रति व्यक्ति: ईरान का GDP प्रति व्यक्ति लगभग $3,000 है, जो एक मध्य आय वाली अर्थव्यवस्था का संकेत है।
3. आर्थिक संरचना: • तेल और गैस: ईरान की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक तेल और गैस निर्यात पर निर्भर है। यह दुनिया के सबसे बड़े तेल और प्राकृतिक गैस उत्पादकों में से एक है। • कृषि और उद्योग: ईरान के पास कृषि और उद्योग के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण संसाधन हैं, लेकिन इनका योगदान अपेक्षाकृत कम है। • सेवा क्षेत्र: सेवा क्षेत्र में विकास हुआ है, लेकिन यह इज़राइल के मुकाबले कम विकसित है।
4. प्रतिबंध और चुनौतियाँ: अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। ये प्रतिबंध विशेष रूप से उसके बैंकिंग और ऊर्जा क्षेत्र को प्रभावित करते हैं।
5. मुद्रास्फीति और बेरोजगारी: ईरान की मुद्रास्फीति दर उच्च रही है और बेरोजगारी भी एक प्रमुख समस्या है।
6. वाणिज्यिक संबंध: ईरान के प्रमुख व्यापारिक साझेदार चीन, भारत, तुर्की और रूस हैं। प्रतिबंधों के कारण ईरान के व्यापारिक संबंध सीमित रहे हैं।
तुलनात्मक निष्कर्ष • आर्थिक विविधता: इज़राइल की अर्थव्यवस्था अधिक विविध और नवाचारी है, जबकि ईरान की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक तेल और गैस पर निर्भर है। • आय स्तर: इज़राइल का GDP प्रति व्यक्ति ईरान की तुलना में बहुत अधिक है, जो उच्च जीवन स्तर और आर्थिक अवसरों को दर्शाता है। • अंतरराष्ट्रीय संबंध: इज़राइल के मजबूत अंतरराष्ट्रीय संबंध और विदेशी निवेश ने उसकी आर्थिक स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके विपरीत, ईरान को अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है, जिससे उसकी आर्थिक प्रगति बाधित हुई है। • प्राकृतिक संसाधन: ईरान के पास विशाल तेल और गैस संसाधन हैं, जो उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, लेकिन इन्हें प्रभावी ढंग से उपयोग करने में अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों ने बाधा डाली है। दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं की संरचना, चुनौतियाँ, और संभावनाएँ भिन्न हैं, जो उनके आर्थिक प्रदर्शन और वैश्विक अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिकाओं को प्रभावित करती हैं।
इज़राइल और ईरान के बीच युद्ध में अमेरिका और पश्चिमी देश इज़राइल का समर्थन करेंगे।
यदि ईरान और इज़राइल के बीच युद्ध होता है, तो यह संभावना है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी देश इज़राइल का समर्थन करेंगे। इसके कई कारण हैं: 1. राजनीतिक और सैन्य गठबंधन • अमेरिका-इज़राइल संबंध: अमेरिका और इज़राइल के बीच एक मजबूत राजनीतिक, सैन्य, और आर्थिक गठबंधन है। अमेरिका ने लंबे समय से इज़राइल को सैन्य सहायता प्रदान की है और दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंध हैं। • NATO और यूरोपीय संघ: कई पश्चिमी देश, विशेष रूप से NATO के सदस्य, इज़राइल के साथ अच्छे संबंध बनाए रखते हैं और इसे मध्य पूर्व में एक महत्वपूर्ण सहयोगी मानते हैं। 2. साझा रणनीतिक हित • मध्य पूर्व में स्थिरता: पश्चिमी देशों का मानना है कि इज़राइल मध्य पूर्व में स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ईरान का प्रभाव और उसकी नीतियाँ कई पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय हैं। • आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई: इज़राइल और पश्चिमी देश आतंकवाद के खिलाफ सहयोग करते हैं। ईरान के समर्थन वाले प्रॉक्सी समूहों जैसे हिज़बुल्लाह और हामास के खिलाफ यह सहयोग और महत्वपूर्ण हो जाता है। 3. आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध • ईरान पर प्रतिबंध: पश्चिमी देशों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम और उसके क्षेत्रीय नीतियों के कारण उस पर कई आर्थिक और सैन्य प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों का उद्देश्य ईरान के आक्रामक रुख को नियंत्रित करना है। • तेल और ऊर्जा सुरक्षा: पश्चिमी देश ईरान के ऊर्जा संसाधनों पर निर्भरता कम करने की कोशिश करते हैं और अपने ऊर्जा सुरक्षा के लिए वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करते हैं। 4. अंतरराष्ट्रीय संबंध और कूटनीति • संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र में भी, पश्चिमी देशों ने अक्सर इज़राइल का समर्थन किया है और ईरान के खिलाफ नीतियों का समर्थन किया है। • कूटनीतिक प्रयास: पश्चिमी देश अक्सर ईरान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने की कोशिश करते हैं और इसके विस्तारवादी नीतियों को रोकने का प्रयास करते हैं। निष्कर्ष संक्षेप में, यदि ईरान और इज़राइल के बीच युद्ध होता है, तो यह संभावना अधिक है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और अधिकांश पश्चिमी देश इज़राइल का समर्थन करेंगे। यह समर्थन राजनीतिक, सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक रूप से होगा। हालांकि, पश्चिमी देश भी युद्ध को टालने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के प्रयास करेंगे, क्योंकि युद्ध का प्रभाव व्यापक और गहरा हो सकता है।
इज़राइल की कुंडली-
लग्न कन्या और राशि कर्क है। शनि, जो छठे घर के स्वामी हैं, चंद्रमा को प्रभावित कर रहे हैं क्योंकि चंद्रमा शनि के साथ है और शनि की तीसरी दृष्टि से लग्न को भी प्रभावित कर रहे हैं। यह दर्शाता है कि जब देश स्वतंत्र घोषित किया गया था, तब कितनी कष्टदायक स्थिति थी। हिटलर की सेना द्वारा हजारों लोग मारे गए थे। उस समय शनि की दशा भी चल रही थी।
यहां एक प्रयास किया जा रहा है कि ज्योतिषीय रूप से चीजें कैसे सामने आएंगी।
मंगल की महादशा के दौरान, जो कि जो सबसे खराब घर, यानी कुंडली के आठवें घर आठवें घर के स्वामी हैं, और चंद्रमा, जो शनि द्वारा पीड़ित है, 7-8 अक्टूबर 2023 को हमास, जो फिलिस्तीनी लोगों की सैन्य शाखा है (जिसे ईरान द्वारा वित्तपोषित और प्रशिक्षित किया जाता है और ईरान से मुफ्त हथियार मिलते हैं), ने इज़राइल पर घातक हमले किए जिसमें 1200 लोग, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे, मारे गए। याद रखें कि इज़राइल भी शनि की ढैय्या से गुजर रहा है। इज़राइल ने हमास के खिलाफ युद्ध शुरू किया और लेबनान से भी हिज़बुल्लाह समूह ने इज़राइल पर हमला किया है, जिसके कारण इज़राइल ने हिज़बुल्लाह को भी निशाना बनाया। यह युद्ध जारी है और अब तक लगभग 50,000 लोग मारे जा चुके हैं। इज़राइल ने प्रतिशोध की कसम खाई और हमास द्वारा बंधक बनाए गए सभी लोगों को मुक्त करने की कसम खाई। पिछले हफ्ते इज़राइल ने तेहरान में हमास प्रमुख हनीह और लेबनान में हिज़बुल्लाह कमांडर को 24 घंटों के भीतर समाप्त कर दिया और यह भी कहा कि 13 जुलाई को उन्होंने हमास के सैन्य प्रमुख अल शुक्री को भी मार डाला। यह इज़राइल के लिए नैतिक बढ़ावा देने वाला और निर्णायक कार्य है लेकिन इज़राइल के लिए बहुत अपमानजनक भी है। ईरान ने इज़राइल पर सीधे हमले का आदेश दिया है।
वर्तमान में इज़राइल राहु की दशा में है (15 दिसंबर 2023 से) जो सबसे खराब घर, यानी कुंडली के आठवें घर में स्थित है। अंतरदशा भी राहु की है और प्रत्यंतर दशा बृहस्पति की है जो चौथे घर में अपने स्वयं के चिन्ह धनु में स्थित है। यह बृहस्पति प्रत्यंतर इज़राइल को ऊपर हाथ देने के लिए बाध्य है, खासकर क्योंकि गोचर बृहस्पति मई से नवें घर में चला गया है और सूर्य और बुध के ऊपर है जो लग्न स्वामी हैं। हालांकि, 21 सितंबर के बाद इस वर्ष शनि के प्रत्यंतर से तनाव बढ़ेगा और ईरान निश्चित रूप से प्रतिशोध लेने की कोशिश करेगा, लेकिन छठे घर के स्वामी का ग्यारहवें घर में होना संघर्ष में विजय दिलाएगा, इसलिए अंत में मेरे विचार में इज़राइल का ऊपर हाथ रहेगा और अब इज़राइल एक युद्धविराम का प्रबंधन कर सकता है क्योंकि हमास को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया गया है, उनकी सुरंगें, संरचना, हथियार और गोला-बारूद बड़े पैमाने पर नष्ट हो चुके हैं। और अगर ईरान के साथ पूर्ण युद्ध हुआ तो अमेरिका और पश्चिमी दुनिया इज़राइल का समर्थन करेंगे। भौगोलिक रूप से इज़राइल से दूर स्थित ईरान के लिए लंबे समय तक युद्ध में शामिल रहना और इसे जारी रखना बेहद कठिन होगा।



