Combust Planets

अस्त ग्रहों (Combust Planets) का ज्योतिष शास्त्र में बहुत गहन और व्यापक प्रभाव होता है। जब कोई ग्रह सूर्य के अत्यधिक समीप आ जाता है, तो वह अस्त हो जाता है। सूर्य की तीव्र चमक ग्रह के स्वाभाविक गुणों और प्रभावों को कमज़ोर कर देती है, जिससे वह ग्रह अपनी सकारात्मक उर्जा और शक्ति खो देता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अस्त ग्रहों का कुंडली पर असर बहुत महत्वपूर्ण होता है और यह कई प्रकार की नकारात्मक स्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है, जैसे मानसिक, शारीरिक, वित्तीय, और सामाजिक समस्याएँ।

अस्त ग्रह क्या है?

जब कोई ग्रह सूर्य से एक निश्चित दूरी पर आ जाता है, तो उसे अस्त माना जाता है। हर ग्रह के लिए सूर्य से निकटतम दूरी अलग-अलग होती है, जिसे “अस्त अवधि” कहा जाता है। इस अवधि में, वह ग्रह अपनी चमक खो देता है और कुंडली में वह अपनी सामान्य प्रभावशाली शक्ति के विपरीत कमजोर और बेअसर हो जाता है।

ग्रहों के अस्त होने की दूरी (सूर्य से कोणीय दूरी):

  1. चंद्रमा – 12 अंश
  2. मंगल – 17 अंश
  3. बुध – 14 अंश (वक्री होने पर 12 अंश)
  4. बृहस्पति – 11 अंश
  5. शुक्र – 10 अंश (वक्री होने पर 8 अंश)
  6. शनि – 15 अंश

अस्त ग्रहों के प्रभाव

अस्त ग्रह अपने सामान्य, नैसर्गिक गुणों को खो देते हैं और उनकी शुभता या सकारात्मक परिणाम बहुत सीमित हो जाते हैं। इनके प्रमुख प्रभावों को समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जा सकता है:

  1. ग्रह का अस्त हो जाना व्यक्ति के जीवन में अवरोध उत्पन्न करता है:
    • अस्त ग्रह अपने फल देने में असमर्थ होता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई ग्रह उच्च राशि में भी हो लेकिन अस्त हो, तो वह अपनी उच्च स्थिति के बावजूद अच्छे परिणाम नहीं दे पाएगा।
    • अस्त ग्रह की दशा और अंतर्दशा में व्यक्ति को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
    • “त्रीभि अस्तै भवे ज़डवत” – यदि तीन ग्रह एक साथ अस्त हों, तो व्यक्ति निष्क्रियता, आलसीपन, और जीवन में स्थिरता का अनुभव करता है।
  2. सकारात्मक और नकारात्मक ग्रहों पर प्रभाव:
    • अगर कोई शुभ ग्रह जैसे बृहस्पति, शुक्र, बुध, चंद्रमा अस्त हो जाए, तो उसका नकारात्मक प्रभाव बहुत ज़्यादा होता है।
    • पाप ग्रहों (मंगल, शनि, राहु, केतु) के अस्त होने से व्यक्ति के जीवन में अधिक कठिनाई, दुर्घटना, और दुख की संभावना बढ़ जाती है।

विशिष्ट ग्रहों के अस्त होने पर उनके प्रभाव

1. चंद्रमा का अस्त (Combust Moon):

  • चंद्रमा मन और मानसिक स्थिति का कारक है, इसलिए इसका अस्त होना मानसिक अशांति और भावनात्मक अस्थिरता का संकेत है।
  • व्यक्ति को माँ से जुड़े कष्टों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे माँ का स्वास्थ्य बिगड़ना।
  • दौरे आना, मिर्गी, मानसिक बीमारियाँ, और अवसाद जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • चंद्रमा का अस्त होना मानसिक संतुलन को खराब करता है और निर्णय लेने की क्षमता को कमजोर करता है।
  • अगर चंद्रमा पाप ग्रहों (राहु, केतु, शनि, मंगल) के प्रभाव में हो तो परिणाम और गंभीर हो सकते हैं। व्यक्ति दीर्घकालिक मानसिक रोगों या किसी प्रकार की मानसिक विकलांगता का सामना कर सकता है।

2. मंगल का अस्त (Combust Mars):

  • मंगल ऊर्जा, साहस और आक्रामकता का कारक है, लेकिन इसका अस्त होना व्यक्ति की शारीरिक शक्ति को प्रभावित करता है।
  • नसों में दर्द, रक्त विकार, और चोट की संभावना अधिक रहती है।
  • मंगल का अस्त होना क्रोध की अधिकता, विवाद, और दुर्घटनाओं की संभावनाएँ बढ़ाता है।
  • यदि अस्त मंगल पर राहु या केतु का प्रभाव हो, तो व्यक्ति को कैंसर, गंभीर दुर्घटनाएँ या रक्तस्राव जैसी स्थितियाँ हो सकती हैं।
  • मंगल के अस्त होने पर व्यक्ति की शारीरिक क्षमता कमज़ोर हो जाती है और उसकी मानसिक ऊर्जा भी प्रभावित होती है।

3. बुध का अस्त (Combust Mercury):

  • बुध बुद्धि, तर्कशक्ति, और संवाद का कारक है। इसका अस्त होना व्यक्ति की तर्कशक्ति और संचार कौशल को कमजोर करता है।
  • व्यक्ति भ्रमित रहता है, निर्णय लेने में कठिनाई होती है, और वह मानसिक तनाव का शिकार हो सकता है।
  • अस्त बुध के कारण व्यक्ति चर्म रोग, फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों, और मानसिक विकारों से पीड़ित हो सकता है।
  • यदि बुध षष्ठेश या अष्टमेश के प्रभाव में हो, तो व्यक्ति दमा, चर्म रोग, और मानसिक अस्थिरता से परेशान हो सकता है।

4. बृहस्पति का अस्त (Combust Jupiter):

  • बृहस्पति ज्ञान, धर्म, आध्यात्मिकता, और संतान सुख का कारक है। इसका अस्त होना व्यक्ति को आध्यात्मिक और शिक्षा के क्षेत्र में नुकसान पहुँचाता है।
  • बृहस्पति के अस्त होने से व्यक्ति का अध्ययन में मन नहीं लगता, वह स्वार्थी हो जाता है, और संतान सुख में बाधा आती है।
  • अस्त बृहस्पति लीवर की समस्याओं, उच्च ज्वर, और टायफाइड जैसी बीमारियों को जन्म दे सकता है।
  • यदि अस्त बृहस्पति पर राहु या केतु का प्रभाव हो, तो व्यक्ति विवाहेत्तर संबंध, अनैतिक कार्यों, और नशे की लत में फंस सकता है।

5. शुक्र का अस्त (Combust Venus):

  • शुक्र प्रेम, विवाह, सौंदर्य, और सुख-सुविधाओं का कारक है। इसका अस्त होना वैवाहिक जीवन और शारीरिक सुखों में बाधा डालता है।
  • शुक्र के अस्त होने से व्यक्ति की पत्नी को स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं, जैसे गर्भाशय की समस्याएँ या अन्य यौन समस्याएँ।
  • शुक्र का अस्त होने से नेत्र रोग, चर्म रोग, और यौन संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
  • शुक्र के राहु-केतु से प्रभावित होने पर व्यक्ति की प्रतिष्ठा को हानि होती है, और वह गंभीर शारीरिक बीमारियों का सामना कर सकता है।

6. शनि का अस्त (Combust Saturn):

  • शनि श्रम, धैर्य, और न्याय का कारक है। इसका अस्त होना व्यक्ति को शारीरिक कष्ट, अस्थि भंग, और रीढ़ की हड्डी में समस्याओं से पीड़ित करता है।
  • शनि का अस्त व्यक्ति को सामाजिक और कार्यक्षेत्र में हानि पहुँचाता है, और उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • अस्त शनि के राहु-केतु के प्रभाव में होने पर जोड़ों में दर्द, शारीरिक जकड़न, और पुरानी बीमारियाँ हो सकती हैं।
  • यदि शनि षष्ठेश या अष्टमेश के प्रभाव में हो, तो व्यक्ति गंभीर अस्थि रोग, मुकदमे, और जीवन में निरंतर संघर्ष का सामना कर सकता है।

उपाय (Remedies for Combust Planets):

  1. दान और मंत्र: अस्त ग्रह के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए उस ग्रह से जुड़े दान, मंत्र, और पूजा का सहारा लिया जा सकता है।
    • उदाहरण: सूर्य के अस्त ग्रहों के लिए दान में तांबा, गेहूँ, गुड़, और लाल वस्त्र देना लाभकारी होता है।
  2. रत्न धारण: ज्योतिष के अनुसार, अस्त ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न धारण किया जा सकता है, लेकिन इसे धारण करने से पहले किसी अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श ज़रूरी होता है।
  3. रुद्राक्ष: अस्त ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए रुद्राक्ष धारण करना भी लाभकारी माना जाता है, खासकर पंचमुखी या सप्तमुखी रुद्राक्ष।
  4. यज्ञ और हवन: ग्रहों के दोष निवारण के लिए यज्ञ और हवन किए जा सकते हैं, जिससे व्यक्ति पर ग्रहों का शुभ प्रभाव बने।

अस्त ग्रहों का विश्लेषण बहुत सावधानी से करना चाहिए क्योंकि इन ग्रहों के प्रभाव व्यक्ति के जीवन के हर क्षेत्र में देखे जा सकते हैं।

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